दुर्भाग्य योग -
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भाग्य का स्वामी त्रिक भावों में या भाग्य स्थान में ग्रहण या भाग्य का स्वामी राहु केतु युक्त हो तो दुर्भाग्य योग बनता है।
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ऐसे योग वाले का भाग्य उसका साथ नहीं देता।
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उसकी जिन्दगी बिल्कुल ऐसी होती है जैसे 99% काम होने पर सारे कोई धरे पर पानी फिर जाना।
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ऐसा किसी भी फील्ड में हो सकता है जिसे दुर्भाग्य कहा जा सकता है।
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लेकिन दुर्भाग्य योग वालों में एक बात कॉमन होगी कि भगवान और अध्यात्म से सम्बंधित मुश्किलें उन्हें अवश्य आएंगी।
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तन्त्र साधनाओं में असफलता मिलेगी और नुक्सान होगा या किसी भूत प्रेत पिशाच को साधना का आकर्षण ज्यादा रहेगा और ऐसी साधना कर के खुद की इन नकारात्मक शक्तियों के जाल में फँसा देते हैं।
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जिसकी ये कुण्डली है उस व्यक्ति ने 3 ऐसी ही साधनाओं को करना शुरू किया और हर बार नुकसान हुआ।
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पहली बार भूत की साधना शुरू की थी और बीच में छोड़ दी।
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काफी बीमार हुआ था और मरने से बचा।
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दूसरी बार पीर साधना करना शुरू की थी और कुछ डरावने अनुभवों के कारण वो भी बीच में छोड़ी।
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इसने सुनाया था कि साधना छोड़ने के बाद इसकी आत्मा ही बॉडी से निकल गई थी और डैड बॉडी की तरह पड़ा था।
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ये अपनी पूरी बॉडी को ऐसे देख रहा था जैसे कोई अपने जुड़वा भाई को सोया हुआ देख रहा था।
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इसकी आत्मा ने अपनी बॉडी में घुसने की कोशिश को लेकिन जा ही नहीं पाया।
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कह रहा था कि बहुत रोया चिल्लाया लेकिन कुछ नहीं हुआ।
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बहुत मुश्किल से आत्मा शरीर मे घुसी।
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ये होश के आने के बाद कई दिन तके डिप्रेशन में रहा।
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फेसबुक पे जनवरी 2014 में मिला था।
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तीसरी बार मेरे से कर्णपिशाचिनी के बारे में पूछा था कि इस साधना को कैसे करते हैं?
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इसको दूसरों के मन की बात जानने का शौक था।
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मैंने कहा कि ये साधनाएं ठीक नहीं होती हैं क्यों खुद को परेशानी में डालना।
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मैंने इसको साधना का तरीका नहीं बताया।
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इसको बहुत समझाया लेकिन इसने नहीं सुनी।
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आधा अधूरा ज्ञान कहीं से इक्कठा किया और शुरू हो गया।
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21 दिन को साधना थी और 7 दिन हो चुके थे शुरू किए हुए।
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तब मेरे को मैसेज किया कि इसको डरावने अनुभव हो रहे हैं।
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मैंने इसको बोल दिया कि ये पिशाचिनी तेरे को तेरी माँ बहन या पत्नी से अलग कर देगी और मरने से पहले तेरे को अपना मल खिलाएगी और मुँह पे ही मल करेगी।
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ये डर गया, लेकिन बात बिल्कुल सच थी।
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बोला कि अब साधना छोड़ देगा।
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इसने बीच में साधना छोड़ दी।
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जब इसका साधना का समय हुआ तो ये नहीं गया।
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मैसेज कर के बोला कान में आवाजें आ रही हैं, सांप की फुसकारी को तरह आवाजें शाम के समय शुरू हो चुकी थी जो 2 घण्टे से इसको लगातार सुनाई दे रही हैं।
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जनवरी 2014 में इसने वो साधना शुरू की थी और 27 जनवरी को 7-8 दिन बाद छोड़ दी।
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लेकिन इसने फिर से पैशाचिक शक्ति को छेड़ा था।
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शक्ति क्रोधित हुई और 5-6 दिन बाद फरवरी में इसके पिता की मृत्यु एक एक्सीडेंट में हो गई।
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खुद भी मरने से बचा उस एक्सीडेंट में।
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1 मार्च 2014 को इसका मैसेज आया और इसने बताया कि पिता की मृत्यु हो गई।
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जब भी इसने साधना शुरू की तो नुक्सान ही हुआ।
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ये इसका दुर्भाग्य है।
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कुण्डली से इसके साथ ये सारी घटनाएं स्पष्ट होती हैं।
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जन्म 26 नवम्बर 1990 समय 17:20 बजे।
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ये पॉइंट्स इसकी रुचि इन गूढ़ साधनाओं को तरफ आकर्षित होने और नुक्सान के कारण हैं।
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[1] अष्टम भाव गूढ़ रहस्यों का होता है और वृषभ लग्न में अष्टम भाव का स्वामी बृहस्पति कर्क राशि में केतु के साथ है और नवम भाव में राहु है जिसके कारण तन्त्र में इसकी बहुत रुचि है लेकिन पैशाचिक रुचि अधिक है।
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[2] अष्टम भाव में बैठे भाग्येश शनि की तीसरी दृष्टि चन्द्रमा पर और दसवीं दृष्टि पँचम भाव पर है जो मन बुद्धि को भाग्य, धर्म, आध्यात्म और तन्त्र मन के प्रति आकर्षित होने वाला बनाती है
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[3] द्वादश भाव के स्वामी मंगल की आठवीं दृष्टि अष्टम भाव पर काफी गुप्त रहस्यों का खुलना बताती है।
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[4] भाग्येश और दशमेश शनि का अष्टम भाव में होना भी इसकी गूढ़ विद्याओं में अधिक रुचि देता है।
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[5] भाग्य मृत्यु का संकट लाएगा और पिता का संकट भी आएगा।
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[6] इसकी साधना हर बार बीच मे छूटी और भाग्य की हानि हर बार हुई।
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हर बार कोई ना कोई मृत्युतुल्य संकट आया।
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[7] जो इसकी कर्णपिशाचिनी साधना की शुरू हुई और बीच मे छोड़ने पर इसके पिता की मृत्यु एक दुर्घटना में हुई वो शनि का कारण है।
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जब भी इसने ऐसी साधना की तो इसको हर बार जान का संकट आया है और अंत मे जब पिता की मृत्यु हो गई तब कर के अक्ल ठिकाने बैठी।
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लेकिन दिमाग फिर भी घूम फिर के इन्हीं साधनाओं में भटका है।
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[8] एक साधना में इसको सफलता मिली थी लेकिन उस शक्ति के नियमों से नहीं रहा और वो शक्ति इसकी पत्नी का गर्भनष्ट कर के और इसको मार पीट के छोड़कर चली गई।
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जिसका कारण अष्टम भाव में बैठे शनि की दसवीं दृष्टि पँचम भाव पर है।
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[9] कुण्डली में बृहस्पति और चन्द्रमा का षडाष्टक होने से बना शकट योग इसके जीवन को अधिक सफल नहीं बनाता है।
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[10] शनि का अष्टम भाव मे होना मृत्युकारक प्रभाव लेना इसके लिए काफी परेशानी दायक है।
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जहां भी शनि की दृष्टि गई वहाँ पर भाग्य के कारण हानि हुई और स्वयं को भी मृत्युतुल्य कष्ट मिले।
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इन असफलताओं को इसका दुर्भाग्य कहा जा सकता है
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भाग्य का स्वामी त्रिक भावों में या भाग्य स्थान में ग्रहण या भाग्य का स्वामी राहु केतु युक्त हो तो दुर्भाग्य योग बनता है।
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ऐसे योग वाले का भाग्य उसका साथ नहीं देता।
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उसकी जिन्दगी बिल्कुल ऐसी होती है जैसे 99% काम होने पर सारे कोई धरे पर पानी फिर जाना।
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ऐसा किसी भी फील्ड में हो सकता है जिसे दुर्भाग्य कहा जा सकता है।
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लेकिन दुर्भाग्य योग वालों में एक बात कॉमन होगी कि भगवान और अध्यात्म से सम्बंधित मुश्किलें उन्हें अवश्य आएंगी।
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तन्त्र साधनाओं में असफलता मिलेगी और नुक्सान होगा या किसी भूत प्रेत पिशाच को साधना का आकर्षण ज्यादा रहेगा और ऐसी साधना कर के खुद की इन नकारात्मक शक्तियों के जाल में फँसा देते हैं।
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जिसकी ये कुण्डली है उस व्यक्ति ने 3 ऐसी ही साधनाओं को करना शुरू किया और हर बार नुकसान हुआ।
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पहली बार भूत की साधना शुरू की थी और बीच में छोड़ दी।
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काफी बीमार हुआ था और मरने से बचा।
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दूसरी बार पीर साधना करना शुरू की थी और कुछ डरावने अनुभवों के कारण वो भी बीच में छोड़ी।
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इसने सुनाया था कि साधना छोड़ने के बाद इसकी आत्मा ही बॉडी से निकल गई थी और डैड बॉडी की तरह पड़ा था।
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ये अपनी पूरी बॉडी को ऐसे देख रहा था जैसे कोई अपने जुड़वा भाई को सोया हुआ देख रहा था।
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इसकी आत्मा ने अपनी बॉडी में घुसने की कोशिश को लेकिन जा ही नहीं पाया।
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कह रहा था कि बहुत रोया चिल्लाया लेकिन कुछ नहीं हुआ।
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बहुत मुश्किल से आत्मा शरीर मे घुसी।
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ये होश के आने के बाद कई दिन तके डिप्रेशन में रहा।
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फेसबुक पे जनवरी 2014 में मिला था।
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तीसरी बार मेरे से कर्णपिशाचिनी के बारे में पूछा था कि इस साधना को कैसे करते हैं?
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इसको दूसरों के मन की बात जानने का शौक था।
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मैंने कहा कि ये साधनाएं ठीक नहीं होती हैं क्यों खुद को परेशानी में डालना।
।
मैंने इसको साधना का तरीका नहीं बताया।
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इसको बहुत समझाया लेकिन इसने नहीं सुनी।
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आधा अधूरा ज्ञान कहीं से इक्कठा किया और शुरू हो गया।
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21 दिन को साधना थी और 7 दिन हो चुके थे शुरू किए हुए।
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तब मेरे को मैसेज किया कि इसको डरावने अनुभव हो रहे हैं।
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मैंने इसको बोल दिया कि ये पिशाचिनी तेरे को तेरी माँ बहन या पत्नी से अलग कर देगी और मरने से पहले तेरे को अपना मल खिलाएगी और मुँह पे ही मल करेगी।
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ये डर गया, लेकिन बात बिल्कुल सच थी।
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बोला कि अब साधना छोड़ देगा।
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इसने बीच में साधना छोड़ दी।
।
जब इसका साधना का समय हुआ तो ये नहीं गया।
।
मैसेज कर के बोला कान में आवाजें आ रही हैं, सांप की फुसकारी को तरह आवाजें शाम के समय शुरू हो चुकी थी जो 2 घण्टे से इसको लगातार सुनाई दे रही हैं।
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जनवरी 2014 में इसने वो साधना शुरू की थी और 27 जनवरी को 7-8 दिन बाद छोड़ दी।
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लेकिन इसने फिर से पैशाचिक शक्ति को छेड़ा था।
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शक्ति क्रोधित हुई और 5-6 दिन बाद फरवरी में इसके पिता की मृत्यु एक एक्सीडेंट में हो गई।
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खुद भी मरने से बचा उस एक्सीडेंट में।
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1 मार्च 2014 को इसका मैसेज आया और इसने बताया कि पिता की मृत्यु हो गई।
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जब भी इसने साधना शुरू की तो नुक्सान ही हुआ।
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ये इसका दुर्भाग्य है।
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कुण्डली से इसके साथ ये सारी घटनाएं स्पष्ट होती हैं।
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जन्म 26 नवम्बर 1990 समय 17:20 बजे।
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ये पॉइंट्स इसकी रुचि इन गूढ़ साधनाओं को तरफ आकर्षित होने और नुक्सान के कारण हैं।
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[1] अष्टम भाव गूढ़ रहस्यों का होता है और वृषभ लग्न में अष्टम भाव का स्वामी बृहस्पति कर्क राशि में केतु के साथ है और नवम भाव में राहु है जिसके कारण तन्त्र में इसकी बहुत रुचि है लेकिन पैशाचिक रुचि अधिक है।
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[2] अष्टम भाव में बैठे भाग्येश शनि की तीसरी दृष्टि चन्द्रमा पर और दसवीं दृष्टि पँचम भाव पर है जो मन बुद्धि को भाग्य, धर्म, आध्यात्म और तन्त्र मन के प्रति आकर्षित होने वाला बनाती है
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[3] द्वादश भाव के स्वामी मंगल की आठवीं दृष्टि अष्टम भाव पर काफी गुप्त रहस्यों का खुलना बताती है।
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[4] भाग्येश और दशमेश शनि का अष्टम भाव में होना भी इसकी गूढ़ विद्याओं में अधिक रुचि देता है।
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[5] भाग्य मृत्यु का संकट लाएगा और पिता का संकट भी आएगा।
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[6] इसकी साधना हर बार बीच मे छूटी और भाग्य की हानि हर बार हुई।
।
हर बार कोई ना कोई मृत्युतुल्य संकट आया।
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[7] जो इसकी कर्णपिशाचिनी साधना की शुरू हुई और बीच मे छोड़ने पर इसके पिता की मृत्यु एक दुर्घटना में हुई वो शनि का कारण है।
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जब भी इसने ऐसी साधना की तो इसको हर बार जान का संकट आया है और अंत मे जब पिता की मृत्यु हो गई तब कर के अक्ल ठिकाने बैठी।
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लेकिन दिमाग फिर भी घूम फिर के इन्हीं साधनाओं में भटका है।
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[8] एक साधना में इसको सफलता मिली थी लेकिन उस शक्ति के नियमों से नहीं रहा और वो शक्ति इसकी पत्नी का गर्भनष्ट कर के और इसको मार पीट के छोड़कर चली गई।
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जिसका कारण अष्टम भाव में बैठे शनि की दसवीं दृष्टि पँचम भाव पर है।
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[9] कुण्डली में बृहस्पति और चन्द्रमा का षडाष्टक होने से बना शकट योग इसके जीवन को अधिक सफल नहीं बनाता है।
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[10] शनि का अष्टम भाव मे होना मृत्युकारक प्रभाव लेना इसके लिए काफी परेशानी दायक है।
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जहां भी शनि की दृष्टि गई वहाँ पर भाग्य के कारण हानि हुई और स्वयं को भी मृत्युतुल्य कष्ट मिले।
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इन असफलताओं को इसका दुर्भाग्य कहा जा सकता है
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